Saturday, March 24, 2007

Al Fatiha

क़ुरआने अज़ीम का ख़ुलासा
Al - Fatiha :
पहली सूरत सूरए फ़ातिहा कहलाती है जिसे अवाम अलहम्दु शरीफ़ भी कहते है. सूरए फ़ातिहा नमाज़ की हर रक़अत में पढ़ी जाती है दर अस्ल यह एक दुआ है जो अल्लाह तआला ने हर उस इन्सान को सिखाई है जो इस मुकद्दस किताब का मुतालिआ शुरु कर रहा है. इस में सबसे पहले अल्लाह की अहम सिफ़ात ख़ुसूसन तमाम जहानों के रब होने, सबसे ज़ियादा रहमान और रहीम होने और साथ साथ इन्साफ़ करने वाले की हैसियत से तारीफ़ की गई है. और उसके एहसानों और नेमतों का शुक्र भी अदा किया गया है. फिर अपनी बन्दगी और आजिज़ी का ऐतिराफ़ करते हुए उससे ज़िन्दगी के मामलात में सीधे रास्ते की हिदायत तलब की गई है. जो हमेशा से उसके इनामयाफ्त़ा और मक़बूल बन्दों को हासिल रही है और जिससे सिर्फ़ वही लोग मेहरुम होते है जिन्होंने उसके रास्ते को छोड़ दिया है. या उसकी कोई परवाह ही नहीं की है.